मेरे पिताजी की पहली कहानी नवरात्रि

पापा जो की एक ऐसा शब्द है जो कि लोग नहीं बुला सकते हैं क्योंकि वह आपके जीवन में बचपन से आपके साथ रहते हैं आपको चलना बढ़ना खाना पीना लोगों से बात करना जैसे चीजें सिखाते हैं वह आप के सबसे पहले दोस्त होते हैं ।

आज मैं भी आपको अपने पिताजी की कहानियां सुनाऊंगा जो कि आपको अच्छी लगेगी और सुनने में भी इंटरेस्टिंग होंगी अब वह नहीं है लेकिन उनकी यादें मेरे साथ है। मैं आपको बता दूं उनकी कुछ कहानियां चौकी बहुत लोगों को प्रेरणादायक होंगी और हमेशा याद रहेंगे जो भी कुछ सिखाएंगे आपको अपने जीवन में।

मुझे याद है की दशहरा का टाइम था यह स्टोरी करीब 2011 के आसपास की रही होगी मुझे अच्छे से याद नहीं है तो मैं आपको बता दूंगी कि उस टाइम मैंने नवरात्रि का समय चल रहा था तब मैं ने उस समय नवरात्रि के व्रत रखे थे। मे करीब 14 साल का रहा हूंगा। मैने patties कब कौन है देखा तभी मेरे को वह खाने की इच्छा हुई लेकिन उस समय मैंने व्रत रखे थे तो मुझे मालूम था कि बाहर का कुछ नहीं खाना है। यह बात मैंने दशहरा के समय पिताजी को बताइए उन्होंने मुझसे कहा तुझे खानी थी? फिर हम दशेरा देख रहे थे तभी एक ठेलेवाला मुझे दिखा तभी पिताजी ने बोला कि चल तुझे पेटिस खिलाते हैं। तब मे वहा उन्के साथ गया तब मैंने यह नहीं सोचा कि उनके पास पैसे हैं कि नहीं। हम लोगो ने वहा पर पेटिस कही जब पैसे देने की बरी आयी तब ही खेला वाला आगे निकल गया था किसी दूसरी दुकान से जाकर खड़ा हुआ तो तभी पिताजी ने कहा कि चल चल चुपचाप से चल आगे अपन देखते हैं चल। तब हम वाहे से निकल गये। मेने पापा से कहा की उनको पैसे क्यू नही दिये तोह वो बोले की वो मेर दोस्त था। लेकिन म्हुजे पता था की शायद उन्के पास पैसे नही थे। फिर वो देने गये तब तक पब्लिक दशहरा से सब निकल रहे थे। भीड़ होने के कारण वह देवी नहीं पाए।

इस स्टोरी से हमे ये सेख मिलती है की हमे हमेशा फालतू की फरमाइश नहीं करनी चाहिए। और हमे ये भी समजने चैये की उनका पास वो दिलाने के लिये पैसा है। ये स्टोरी सच्ची है। और प्रेरणादायक।

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